Transcendental Institute of Radhakrishna’s Teaching for Holy Awakening

On the Disappearance of Srila Bhakti Saurabh Bhaktisar Goswami Maharaj Back

परम पूज्यपाद त्रिदंडी स्वामी भक्ति सौरभ भक्तिसार महाराज के तिरोभाव के उपलक्ष में

 

विश्वव्यापी श्री गौड़ीय मठ समूह के प्रतिष्ठाता नित्यलीला प्रविष्ट ॐ 108 श्री श्रीमद भक्ति सिद्धांत सरस्वति ठाकुर प्रभुपाद के चरणाश्रित प्रिय पार्षदों में अन्यतम, श्रीधाम मायापुर ईशोद्यानस्थ श्री गौरांग गौड़ीय मठ(रजिस्टर्ड) प्रतिष्ठान के प्रतिष्ठाता परम पूज्यपाद परिव्राजकाचार्य त्रिदंडी स्वामी भक्ति सौरभ भक्तिसार महाराज 97 वर्ष की आयु में गत २ श्रीधर (५ १० श्री गौराब्द ) १६ श्रावण(१४०३), २ अगस्त १९९६ की प्रातः शुक्ल द्वितीया तिथि को उनके ईशोद्यानस्थ श्री गौरांग गौड़ीय मठ में अर्धबाह्यवस्था में श्रीभगवद्लीला स्मरण करते-करते उनके चरणाश्रित त्यकताश्रमी, गृहस्थ एवं उनके प्रति अनुरक्त भक्तों को विरहसागर में निम्मजित करके श्रीगौरधाम रज को प्राप्त हुए।

परमपूज्यपाद महाराज के अप्रकट होने के समाचार मायापुर एवं नवद्वीप स्थित गौड़ीय मठों में प्रचारित होने पर उस दिन प्रातः श्री गौरांग गौड़ीय मठ में विरह वेदना एवं महाराज के चरणोंमें दंडवत प्रणाम ज्ञापन करने की इच्छा से एकत्रित हुए भक्तों में श्री श्रीमद भक्ति सिद्धांत सरस्वति ठाकुर प्रभुपाद के चरणाश्रित शिष्य त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति निलय गिरी महाराज, श्री चैतन्य मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति प्रज्ञान यति महाराज और श्रीमद पर्वत महाराज, श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति रक्षक नारायण महाराज एवं गोपीनाथ गौड़ीय मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति विबुध बोधायन महाराज प्रमुख थे।

श्री गौरांग गौड़ीय मठ के मूल मंदिर से प्रायः २० गज़ की दूरी दक्षिण-पूर्व दिशा में पूजनीय वैष्णवों की उपस्थिति में संकीर्तन के बिच यथाविधि अनुसार महाराज का समाधी कार्य संपन्न हुआ। दोपहर ३.३० से आरंभ कर सायं ६बाजे तक यह अनुष्ठान चला। अनेक संन्यासी, ब्रह्मचारी एवं गृहस्थ इस अनुष्ठान में सम्मिलित हुए।

उपस्थित संन्यासी व् बाबाजी महाराज में श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति रक्षक नारायण महाराज, श्री गोपीनाथ गौड़ीय मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भागवत महाराज और श्रीमद विष्णुदास बाबाजी महाराज, त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद परिव्राजक महाराज, श्री कृष्ण चैतन्य मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद मुनि महाराज, भजन कुटीर के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद रसानंद वन महाराज, इस्कोन के त्रिदण्डि यति श्रीमद सुभग स्वामी महाराज, श्री चैतन्य मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद पूरी महाराज, श्री नित्यानंद गौड़ीय आश्रम के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद गोविन्द महाराज, श्री सारस्वत गौड़ीय मठ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद दामोदर महाराज श्री गौड़ीय संघ के त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद जनार्दन महाराज, श्री चैतन्य भागवत मठ के श्रीमद गुरुदास बाबाजी उपस्थिति थे। इसके अतिरिक्त श्री चैतन्य मठ, श्री गोपीनाथ गौड़ीय मठ, श्री कृष्ण चैतन्य मठ, श्री चैतन्य मठ, इस्कोन, श्री चैतन्य सारस्वत मठ, श्री परमहंस गौड़ीय मठ, श्री श्रमणाश्रम, श्री कृष्ण चैतन्य मिशन एवं अन्यान्य मठ-प्रतिष्ठानों के अनेक ब्रह्मचारियोंने भी इस अनुष्ठान में अपना योगदान दिया।

19 श्रावण, ४ अगस्त रविवार श्रील गोपालभट्ट गोस्वामी की शुभ तिरोभाव तिथि पर महराज श्री का विरह-उत्सव संपन्न हुआ। विरह-सभा में महाराज के पावन जीवन चरित्र का कीर्तन-गान करते हुए त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति निलय गिरी महाराज, त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति रक्षक नारायण महाराज, त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद भक्ति वैभव सागर महाराज एवं त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद पूरी महाराज ने उनसे कृपा-प्राथना की। मध्याह्न में सम्मिलित भक्तों को विविध प्रकार के महाप्रसाद व्यंजन परिवेषण किए गए।

श्रील महाराज सन् 1907 में बांग्लादेश के खूलना जिला के चंदनीमहल नामक गांव में श्रीशशधर बंदोपाध्याय और श्रीमती शैलबाला देवी को अवलम्बन करके आविर्भूत हुए। उनके माता-पिता दोनों ही श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद के कृपा-प्राप्त निष्ठावान गृहस्थ भक्त थे। पिता भक्त होने के कारण उन्होंने अपने पुत्रों के नाम विजयगोपाल, ननीगोपाल, रामगोपाल, श्रीव्रजगोपाल रखे थे। पूज्यपाद महाराज का पूर्वाश्रम का पिता के द्वारा रखा हुआ नाम श्री ननीगोपाल बंदोपाध्याय था। सन् १९३९में यौवन-काल में श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर से हरिनाम और दीक्षा-मन्त्र ग्रहण करने के बाद वे श्रीनन्द गोपाल ब्रह्मचारी नाम से विख्यात हुए।

श्रील महाराज ने प्रवेशिका और विज्ञान शाखा में इंटरमीडिएट की परीक्षाएँ विशिष्ट योग्यता के साथ उत्तीर्ण कीं और प्रौद्योगिकी(इंजीनियरिंग) के क्षेत्र में उच्च अध्ययन करने के लिए अपने पिता के कार्यस्थल कटक (उड़ीसा) में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। कटक में, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वाति गोस्वामी ठाकुर ने श्रीमन्महाप्रभु के प्रेम-भक्ति की शिक्षा को प्रचार करने के लिए उड़िया बाजार में ‘श्रीसच्चिदानंद नामक’ एक प्रचार केंद्र की स्थापना की थी।पूजनीय महाराज उक्त मठ में जाते रहते और वैष्णवों के मुख से श्रीभक्तिसिद्धांत-वाणी को श्रवण करते थे। जब श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर का कटक में शुभागमन हुआ तो वे उनकी महान पुरुषोचित मूर्ति को देखकर और उनके मुख्पद्मविनिसृत वीर्यवती हरिकथा को सुनकर उनसे बहुत आकर्षित हो गए। उन्होंने जागतिक विद्या उपार्जन (कॉलेज की पढाई) को त्याग कर सन् १९३० में कटक में प्रभुपाद से हरिनामाश्रय ग्रहण किया और श्रीधाम मायापुर में श्री चैतन्य मठ में जाकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। उनके गुरु के निर्देशन में वे श्री भक्तिविनोद संस्थान में शिक्षक के रूप में तथा दैनिक ‘नदिया प्रकाश’ के संपादकीय विभाग में भक्तिग्रंथों के मुद्रण एवं प्रचार कार्य में नियोजित हुए।

श्रील भक्ति सिध्धांत सरस्वति ठाकुर ने उनकी सेवा निष्ठा से संतुष्ट होकर श्रीनवद्वीपधाम प्रचारिणी सभा की ओर से उन्हें ‘भक्तितुल’ गौर-आशीर्वाद से सम्मानित किया। उन्होंने श्री प्रभुपाद के निर्देशन में भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर श्रीमन्महाप्रभु की वाणी का प्रचार किया। प्रभुपाद की अप्रकट होने के बाद भी, वे ग्रन्थविभाग के कार्यों और प्रचार-कार्यों में लगे रहे।

विश्वव्यापी श्री चैतन्य मठ और श्री गौडीय मठ के संस्थापक नित्यलीला प्रविष्ट और 108 श्री श्रीमति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद, के मुख्य पार्षदों में से एक परम पूज्य श्रीमद्भक्तिसारंग गोस्वामी महाराज से एक अनुमान के अनुसार सन् १९४९ में पूज्यपाद श्रीमद नंदगोपाल ने संन्यास ग्रहण किया और वे त्रिदंडीस्वामी श्रीमद भक्ति सौरभ भक्ति सार महाराज के नाम से प्रसिद्द हुए। परमपूज्यपाद श्रीमद्भक्तिसारंग गोस्वामी महाराज के निर्देश अनुसार उन्होंने वृंदावन में जिस इमली के वृक्ष के निचे श्रीमनमहाप्रभु ने विश्राम किया और नाम संकीर्तन किया वही प्रसिद्द इमली-तला में श्री गौडीय संघ की मठ शाखा में बहुत दिनों तक वास करके उन्होंने भजन का आदर्श प्रदर्शित किया। अपनी यात्रा के दौरान दौरान, श्री चैतन्य गौडीय मठ के संस्थापक श्री गुरुदेव जब भी वृंदावन जाते थे, वे उन्हें और उनके शिष्यों को इमली तला मठ में आमंत्रित करते थे और उन्हें अत्यंत प्रीति-पूर्वक अनेक प्रकार से प्रसाद सेवा कराते। उन्होंने श्री गौड़ीय संघ द्वारा प्रकाशित ‘श्रीसारस्वत गौड़ीय’ मासिक का संपादन किया और उनके कई तत्त्वज्ञान-युक्त लेख प्रकाशित किए। जब परमपूज्यपाद श्रीमद्भक्तिसारंग गोस्वामी महाराज के अप्रकट होने के बाद श्री गौड़ीय संघ के आचार्य-पद पर अधिष्ठित हुए। १९७५ में, वे गौड़ देश में लौट आए। बीरभूम में, श्रीनित्यानंद प्रभु के शुभ अविर्भाव-स्थान एकचक्रा धाम के पास शिउड़ी शहर में विशेष रूप से प्रचार किया और वहाँ श्रीनित्यानंद गौड़ीय मठ की स्थापना की। श्रील महाराज के निमंत्रण पर, परमराध्यातम श्रील गुरुदेव ने शिउड़ी में शुभ पदार्पण किया और श्रीनित्यानंद गौड़ीय मठ में भाषण दिया।

बाद में गंगा नदी के तट पर गौर-धाम में रहकर भजन करने की इच्छा से उन्होंने श्रीमन्महाप्रभु की मध्याह्न लीला-भूमि इशोध्यान में श्री गौरांग गौड़ीय मठ की स्थापना की। 1986 में, उन्होंने श्री श्रीषड़ भुज गौरांग विग्रह की सेवाओं को प्रकाशित किया और कमशः पांच चुडावाले सुरम्य श्री मंदिर की स्थापना की।

श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक परमराध्यातम श्रीलगुरुदेव के प्रकट काल में, श्रील गुरुदेव द्वारा आमंत्रित होकर श्री चैतन्य गौड़ीय मठ की हेड ऑफिस कलिकाता में एवं और अन्य स्थानों में शुभपदर्पण करके उन्होंने भाषण दिया। श्रील गुरुदेव के अप्रकट होने के बाद, श्रीमठ के वर्तमान आचार्य, त्रिदंडीस्वामी , श्रीमद्भक्तिबल्लभ तीर्थ महाराज, प्रति वर्ष नवद्वीप धाम की परिक्रमा अंत में, श्रीधाम मायापुर में उनके मठ, उनके चरण कमलों के सान्निध्य में जाकर उनसे आशीर्वाद प्रार्थना करते थे। वे अपार स्नेह वर्षा करते हुए हृदय से आशीर्वाद देते और गुरु-मनोभीष्ट सेवा करने के लिए को प्रोत्साहित करते थे। पीछले वर्ष जब वे अस्वस्थ लीला का अभिनय करते हुए बिछाने पर लेटे हुए थे उस समय उनके चरण कमलों में दंडवत प्रणाम करते हुए जब उनसे पूछा गया कि क्या प्रचार के लिए विदेश जाना उचित होगा, तो उन्होंने इस विषय में बहुत उत्साह प्रकाश किया था।

उनके अंतर्धान(अप्रकट) होने पर केवल मात्र श्री गौरांग गौड़ीय मठ अथवा श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के आश्रित भक्त ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सारस्वत गौड़ीय वैष्णव जगत ही विरह-संतप्त है।